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"कबीर दोहावली / पृष्ठ १०" के अवतरणों में अंतर

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00:36, 27 फ़रवरी 2008 का अवतरण

हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार ।
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥

या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत ।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥ 902 ॥

कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥