भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वीर / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | सच है, विपत्ति जब आती है, | ||
+ | कायर को ही दहलाती है, | ||
+ | सूरमा नहीं विचलित होते, | ||
+ | क्षण एक नहीं धीरज खोते, | ||
+ | विघ्नों को गले लगाते हैं, | ||
+ | काँटों में राह बनाते हैं। | ||
− | + | मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं, | |
+ | संकट का चरण न गहते हैं, | ||
+ | जो आ पड़ता सब सहते हैं, | ||
+ | उद्योग-निरत नित रहते हैं, | ||
+ | शुलों का मूळ नसाते हैं, | ||
+ | बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं। | ||
− | + | है कौन विघ्न ऐसा जग में, | |
− | + | टिक सके आदमी के मग में? | |
− | + | ख़म ठोंक ठेलता है जब नर | |
− | + | पर्वत के जाते पाव उखड़, | |
− | + | मानव जब जोर लगाता है, | |
− | + | पत्थर पानी बन जाता है। | |
− | + | ||
− | + | गुन बड़े एक से एक प्रखर, | |
− | + | हैं छिपे मानवों के भितर, | |
− | + | मेंहदी में जैसी लाली हो, | |
− | + | वर्तिका-बीच उजियाली हो, | |
− | + | बत्ती जो नहीं जलाता है, | |
− | + | रोशनी नहीं वह पाता है। | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | गुन बड़े एक से एक प्रखर , | + | |
− | हैं छिपे मानवों के भितर , | + | |
− | मेंहदी में जैसी लाली हो , | + | |
− | वर्तिका - बीच उजियाली हो , | + | |
− | बत्ती जो नहीं जलाता है , | + | |
− | रोशनी नहीं वह पाता | + |
11:20, 15 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शुलों का मूळ नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भितर,
मेंहदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।