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"नदी का छोर / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
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यह हँसी का छोर | यह हँसी का छोर | ||
− | मन को | + | मन को बाँधता है । |
− | सामने फैला नदी का छोर मन को | + | सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है । |
बादलों के व्यूह में | बादलों के व्यूह में | ||
भटकी हुई मद्धिम दुपहरी | भटकी हुई मद्धिम दुपहरी | ||
कौंध जाती बिजलियों-सी | कौंध जाती बिजलियों-सी | ||
− | + | आँख में छवियाँ छरहरी | |
− | गुनगुनाती घाटियों का शोर मन को | + | गुनगुनाती घाटियों का शोर मन को बाँधता है । |
− | सामने फैला नदी का छोर मन को | + | सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है । |
− | ये | + | ये घटाएँ शोख |
यह माहौल को रँगती सियाही, | यह माहौल को रँगती सियाही, | ||
गुम गए हैं अँधेरों में | गुम गए हैं अँधेरों में | ||
रोशनी के किरनवाही | रोशनी के किरनवाही | ||
− | लहरियों पर लहरियों का दौर मन को | + | लहरियों पर लहरियों का दौर मन को बाँधता है |
− | सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता | + | सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है |
दूर तक फैली हुई है | दूर तक फैली हुई है | ||
रेत की रंगीन दुनिया, | रेत की रंगीन दुनिया, | ||
− | + | यहाँ आकर सिमट जाती हैं | |
− | + | अनेक संस्कृतियाँ | |
− | एक सन्नाटा | + | एक सन्नाटा यहाँ हर ओर मन को बाँधता है । |
− | सामने फैला नदी का छोर मन को | + | सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है। |
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11:50, 21 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
यह खुलापन
यह हँसी का छोर
मन को बाँधता है ।
सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है ।
बादलों के व्यूह में
भटकी हुई मद्धिम दुपहरी
कौंध जाती बिजलियों-सी
आँख में छवियाँ छरहरी
गुनगुनाती घाटियों का शोर मन को बाँधता है ।
सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है ।
ये घटाएँ शोख
यह माहौल को रँगती सियाही,
गुम गए हैं अँधेरों में
रोशनी के किरनवाही
लहरियों पर लहरियों का दौर मन को बाँधता है
सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है
दूर तक फैली हुई है
रेत की रंगीन दुनिया,
यहाँ आकर सिमट जाती हैं
अनेक संस्कृतियाँ
एक सन्नाटा यहाँ हर ओर मन को बाँधता है ।
सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है।