"हिचकी / विमलेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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कोई याद कर रहा होता है | कोई याद कर रहा होता है | ||
बचपन में दादी कहती थीं | बचपन में दादी कहती थीं | ||
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आज रात के बारह बजे कौन हो सकता है | आज रात के बारह बजे कौन हो सकता है | ||
जो याद करे इतना कि यह | जो याद करे इतना कि यह | ||
रूकने का नाम नहीं लेती | रूकने का नाम नहीं लेती | ||
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मन के पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते सरपट | मन के पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते सरपट | ||
और थक कर लौट आते वहीं | और थक कर लौट आते वहीं | ||
जहाँ वह उठ रही लगातार | जहाँ वह उठ रही लगातार | ||
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कौन हो सकता है | कौन हो सकता है | ||
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साथ में बिस्तर पर पत्नी सो रही बेसुध | साथ में बिस्तर पर पत्नी सो रही बेसुध | ||
बच्चा उसकी छाती को पृथ्वी की तरह थामे हुए | बच्चा उसकी छाती को पृथ्वी की तरह थामे हुए | ||
साथ रहने वाले याद तो नहीं कर सकते | साथ रहने वाले याद तो नहीं कर सकते | ||
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पिता ने मान लिया निकम्मा-नास्तिक | पिता ने मान लिया निकम्मा-नास्तिक | ||
नहीं चल सका उनके पुरखों के पद-चिन्हों पर | नहीं चल सका उनके पुरखों के पद-चिन्हों पर | ||
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सुनाया मैंने अपना निर्णय | सुनाया मैंने अपना निर्णय | ||
जार-जार रोईं घर की दीवारें | जार-जार रोईं घर की दीवारें | ||
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लोग जिनकी ओट में सदियों से रहते आए थे | लोग जिनकी ओट में सदियों से रहते आए थे | ||
कि जिन्हें अपना होना कहते थे | कि जिन्हें अपना होना कहते थे | ||
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जो मेरी नज़र में मनुष्यता का इतिहास था | जो मेरी नज़र में मनुष्यता का इतिहास था | ||
और मुझे बनाता था उनसे अधिक मनुष्य | और मुझे बनाता था उनसे अधिक मनुष्य | ||
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इस निर्मम समय में बचा सका अपने हृदय का सच | इस निर्मम समय में बचा सका अपने हृदय का सच | ||
वही किया जो दादी की कहानियों का नायक करता था | वही किया जो दादी की कहानियों का नायक करता था | ||
अन्तर यही कि वह जीत जाता था अन्ततः | अन्तर यही कि वह जीत जाता था अन्ततः | ||
और मैं हारता और अकेला होता जाता रहा | और मैं हारता और अकेला होता जाता रहा | ||
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ऐसे में याद नहीं आता कोई चेहरा | ऐसे में याद नहीं आता कोई चेहरा | ||
जो शिद्दत से याद कर रहा हो | जो शिद्दत से याद कर रहा हो | ||
इतनी बेसब्री से कि रूक ही नहीं रही यह हिचकी | इतनी बेसब्री से कि रूक ही नहीं रही यह हिचकी | ||
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समय की आपा-धापी में मिला | समय की आपा-धापी में मिला | ||
कितने-कितने लोगों से | कितने-कितने लोगों से | ||
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उन्हीं की बदौलत चल सका बीहड़ रास्तों | उन्हीं की बदौलत चल सका बीहड़ रास्तों | ||
कंटीली पगडंडियों-तीखे पहाड़ों पर | कंटीली पगडंडियों-तीखे पहाड़ों पर | ||
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हो सकता है याद कर रहा हो | हो सकता है याद कर रहा हो | ||
किसी मोड़ पर बिछड़ गया कोई मुसाफ़िर | किसी मोड़ पर बिछड़ गया कोई मुसाफ़िर | ||
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जिसमें एक बूढ़ी औरत की सिसकी शामिल थी | जिसमें एक बूढ़ी औरत की सिसकी शामिल थी | ||
एक बूढ़े की आँखों का पथराया-सा इन्तज़ार शामिल था | एक बूढ़े की आँखों का पथराया-सा इन्तज़ार शामिल था | ||
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यह भी हो सकता है | यह भी हो सकता है | ||
आम मंजरा गए हों- फल गए हों टिकोल | आम मंजरा गए हों- फल गए हों टिकोल | ||
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कोई तान याद कर रही हो बेतरह | कोई तान याद कर रही हो बेतरह | ||
बारह बजे रात के एकान्त में | बारह बजे रात के एकान्त में | ||
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कहीं ऐसा तो नहीं कि दुःसमय के ख़िलाफ़ | कहीं ऐसा तो नहीं कि दुःसमय के ख़िलाफ़ | ||
बन रहा हो सुदूर कहीं आदमी के पक्ष में | बन रहा हो सुदूर कहीं आदमी के पक्ष में | ||
कोई एक गुप्त संगठन | कोई एक गुप्त संगठन | ||
और वहाँ एक आदमी की सख़्त ज़रूरत हो | और वहाँ एक आदमी की सख़्त ज़रूरत हो | ||
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नहीं तो क्या कारण है कि रात के बारह बजे | नहीं तो क्या कारण है कि रात के बारह बजे | ||
जब सो रही पूरी कायनात | जब सो रही पूरी कायनात | ||
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और यह हिचकी है कि | और यह हिचकी है कि | ||
रूकने का नाम नहीं लेती | रूकने का नाम नहीं लेती | ||
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कहीं-न-कहीं किसी को तो ज़रूरत है मेरी । | कहीं-न-कहीं किसी को तो ज़रूरत है मेरी । | ||
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22:25, 4 नवम्बर 2011 का अवतरण
अमूमन वह उठती है तो
कोई याद कर रहा होता है
बचपन में दादी कहती थीं
आज रात के बारह बजे कौन हो सकता है
जो याद करे इतना कि यह
रूकने का नाम नहीं लेती
मन के पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते सरपट
और थक कर लौट आते वहीं
जहाँ वह उठ रही लगातार
कौन हो सकता है
साथ में बिस्तर पर पत्नी सो रही बेसुध
बच्चा उसकी छाती को पृथ्वी की तरह थामे हुए
साथ रहने वाले याद तो नहीं कर सकते
पिता ने मान लिया निकम्मा-नास्तिक
नहीं चल सका उनके पुरखों के पद-चिन्हों पर
माँ के सपने नहीं हुए पूरे
नहीं आई उनके पसन्द की कोई घरेलू बहू
उनकी पोथियों से अलग जब
सुनाया मैंने अपना निर्णय
जार-जार रोईं घर की दीवारें
लोग जिनकी ओट में सदियों से रहते आए थे
कि जिन्हें अपना होना कहते थे
उन्हीं के खिलापफ रचा मैंने अपना इतिहास
जो मेरी नज़र में मनुष्यता का इतिहास था
और मुझे बनाता था उनसे अधिक मनुष्य
इस निर्मम समय में बचा सका अपने हृदय का सच
वही किया जो दादी की कहानियों का नायक करता था
अन्तर यही कि वह जीत जाता था अन्ततः
और मैं हारता और अकेला होता जाता रहा
ऐसे में याद नहीं आता कोई चेहरा
जो शिद्दत से याद कर रहा हो
इतनी बेसब्री से कि रूक ही नहीं रही यह हिचकी
समय की आपा-धापी में मिला
कितने-कितने लोगों से
छुटा साथ कितने-कितने लोगों का
लिए कितने शब्द उधर
कितने चेहरों की मुस्कान बंधी
कलेवे की पोटली में
उन्हीं की बदौलत चल सका बीहड़ रास्तों
कंटीली पगडंडियों-तीखे पहाड़ों पर
हो सकता है याद कर रहा हो
किसी मोड़ पर बिछड़ गया कोई मुसाफ़िर
जिसको दिया था गीतों का उपहार
जिसमें एक बूढ़ी औरत की सिसकी शामिल थी
एक बूढ़े की आँखों का पथराया-सा इन्तज़ार शामिल था
यह भी हो सकता है
आम मंजरा गए हों- फल गए हों टिकोल
और खलिहान से उठती चइता की
कोई तान याद कर रही हो बेतरह
बारह बजे रात के एकान्त में
कहीं ऐसा तो नहीं कि दुःसमय के ख़िलाफ़
बन रहा हो सुदूर कहीं आदमी के पक्ष में
कोई एक गुप्त संगठन
और वहाँ एक आदमी की सख़्त ज़रूरत हो
नहीं तो क्या कारण है कि रात के बारह बजे
जब सो रही पूरी कायनात
चिड़िया-चुरूंग तक
और यह हिचकी है कि
रूकने का नाम नहीं लेती
कहीं-न-कहीं किसी को तो ज़रूरत है मेरी ।