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"मेरा मौसम / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
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कभी अरमानों से | कभी अरमानों से | ||
सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में | सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में | ||
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काश | काश |
16:17, 17 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
मेरा जीवन
एक हवाई सफ़र
सा
तुम्हारे सहारे चलता
हुआ मेरे “पाइलट”
जहाँ मुझे
मालूम होता है
तुम्हारी
उद्घोशानाओं से
बहार के मौसम का
हाल ,
तापमान ,उंचाई , और आने वाले
मौसम की
बाधाएं
सीमायें हैं यहाँ
पांव फ़ैलाने की
टकराती हैं कोहनियाँ
कभी रिश्तों से
कभी अरमानों से
सोच कि "सीट" भी अपनी सीमा में
ही झुक पाती है
काश
मेरा जीवन होता
वो रास्तों में खङखङाता
रिक्शा !!
जिसमें बैठ कर हम दोनों
एक दुसरे को निहारते हुए
सुनते
खामोश उद्घोशानाओं को ...