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"पर्वत पर आग जला... / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

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पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में
 
पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में

14:47, 21 सितम्बर 2007 का अवतरण

पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में

नाच रहे हैं हम-तुम हाथ दिए हाथ में


धन मत दो, जन मत दो

ले लो सब ले लो

आओ रे लाज भरे

खेलो सब खेलो

होठों पर वंशी हो, हवा हँसे झर-झर

पास भरा पानी हो, हाथों में मादर


फिर बोलो क्या रखा

दुनिया की बात में ?

हाथ दिए हाथ में