"प्यार में पहले तो इनकार से डर लगता है / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर
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जीत के ख्वाब से बहलाते रहे हैं दिल को | जीत के ख्वाब से बहलाते रहे हैं दिल को | ||
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+ | अब ग्राहक को ही बाज़ार से डर लगता हैं | ||
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+ | वोह ज़माने को बता दे ना कहीं सच मेरा | ||
+ | ए कहानी तेरे किरदार से डर लगता है | ||
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+ | इस ज़माने में भला किसपे भरोसा कर लें | ||
+ | अब तो अपनों के भी व्यहार से डर लगता है | ||
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+ | आईने तेरी नज़र में वो मुहब्बत ना रही | ||
+ | ए सिया अब हमें सिंगार से डर लगता हैं | ||
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11:09, 29 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
प्यार में पहले तो इनकार से डर लगता है
और फिर वादा-शिकन यार से डर लगता है
साथ तो हैं मेरे लिपटा रहे हैं दामन से
फूल ये कैसे कहे खार से डर लगता है
तुम में और हम में हमेशा से ये ही फर्क रहा
जीत से हम को तुम्हें हार से डर लगता है
हर तरफ बिखरी हुई खून से लथपथ खबरें
अब हमें सुब्ह के अखबार से डर लगता है
नाखुदा से कोई उम्मीद नहीं है बाक़ी
अब हमें वाकई मंझधार से डर लगता है
जीत के ख्वाब से बहलाते रहे हैं दिल को
हाँ हकीकत में हमें हार से डर लगता है
हाय महंगाई बता कैसे चलाये घर को
अब ग्राहक को ही बाज़ार से डर लगता हैं
वोह ज़माने को बता दे ना कहीं सच मेरा
ए कहानी तेरे किरदार से डर लगता है
इस ज़माने में भला किसपे भरोसा कर लें
अब तो अपनों के भी व्यहार से डर लगता है
आईने तेरी नज़र में वो मुहब्बत ना रही
ए सिया अब हमें सिंगार से डर लगता हैं