अच्छा् काटना चाहो
तो बन्धु, अच्छा ही बोना होगा
अन्यनथा अन्यथा मित्र ! जिंदगी भर
अपने किए पर रोना होगा।
एक कागज की नाव नदी में, हजार यात्रियों के इश्त हार
दूसरे जा सकें पार
इसलिए पुल तुम्हेंं तुम्हें होना होगा।
जिंदगी व्येवसाय व्यव्साय नहीं है जो लुटाते हो अनुबंधों पर
तुम तब तक ही जीवित हो बंधु, हो जब तक अपने कंधों पर
जैसे भी हो संभव
बोझ अपना स्वंयं ही ढोना होगा।
</poem>