भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हेर श्यामल घन नील गगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKAnooditRachna
 
{{KKAnooditRachna
 
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 +
|संग्रह=निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}

16:23, 3 जून 2012 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍
»  हेर श्यामल घन नील गगन

हेरिया श्यामल घन नील गगने

हेर श्यामल घन नील गगन
याद आए हैं काजल नयन ।
अधर वे कातर करुणा भरे,
देखते थे जो रह-रह अरे,
विदा के क्षण ।।
झर रहा जल चमके बिजुरी
हवा मतवाली वन में तिरी,
व्यथा प्राणों में आई फूट,
कथा यह किसकी मन में फिरी ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 6 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)