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"सुग्घर गाँव के महिमा / कोदूराम दलित" के अवतरणों में अंतर

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11:34, 19 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

बड़ सुग्घर बनगे हमर गाँव, अब लागे लगिस स्वर्ग साहीं
येकर महिमा ला का बतावँ, बड़ सुग्घर बनगे हमर गाँव ।

करके जुरमिल के काम धाम, सब झन मन बनगे सुखी इहाँ
कटगे जम्मो झन के कलेश, अब कोन्हों नइये दुखी इहाँ ।
सब झन के सुधरिस चाल चलन अउ सुधरिस सब झन के सुभाव....

अब्बड़ अन उपजारे लागिन, कर सहकारी खेती-बारी
अब होवय अन के बँटवारा, ये मा हे लाभ भइस भारी ।
अब सब्बो झन मन बनगे मंडल अउ सब्बो झन मन बनिन साव....

दुकान लगाइस सहकारी, बेंचयँ उहँचे सब अपन माल
अउ उहँचे जम्मो जिनिस लेयँ, ठग-जग के अब नइ गलय दाल ।
अब होथय वाजिब नाप जोख अउ होथय वाजिब भाव ताव....

श्रमदान करिन कोड़िन तरिया अउ कोड़िन सुंदर कुँवा एक
सिरजाइन स्कूल–अस्पताल, सहरावयँ सब झन देख-देख ।
आमा, अमली, बर, पीपर के, रुखरई लगाइन ठाँव–ठाँव...

सब झन मन चरखा चलायँ अउ कपड़ा पहिनयँ खादी के
सब करयँ ग्राम-उद्योग खूब, रसदा मँ रेंगय गाँधी के ।
इन अपन गाँव पनपाये बर, सुस्ताए के नइ लेयँ नाव...

सब्बो झन मन पढ़-लिख डारिन, सब्बो बनगें चतुरा-सियान
अब अँगठा नहीं दँतायँ कहूँ, आइस अतेक सब मा गियान ।
मुख देखँय नहीं कछेरी के, पंचाइत मा टोरयँ नियाव...

नइ माने अब जादू-टोना, नइ माने मढ़ी–मसान–भूत
नइ छीयय कभू नशा-पानी, नइ मानयँ ककरो छुआछूत ।
तज दिहिन अंध विश्वास सबो, तज देइन दुविधा, भेद-भाव...

निच्चट चिक्कन-चातर राखयँ, सब घर-दुवार अउ गली खोर
सबके घर बनगें हवादार, सबके घर मा आथय अँजोर ।
नइ हमर गाँव मा अब कोन्हों, बीमारी के जम सकय पाँव...

घर-घर पालिन हें गाय-भइँस, झड़कयँ कसके सब दही-दूध
फटकार ददरिया करयँ मौज अउ करयँ गजब के नाच-कूद ।
सब्बो झन हें भोला शंकर, नइ जानयँ चिटको पेंच–दाँव...

बस इही किसम भारत भर के, सुग्घर बन जावयँ गाँव-गाँव
अउ सबो योजना मन हमार, पूरा हो जावयँ ठाँव-ठाँव ।
जन सुखी होयँ, मत रहयँ इहाँ, ये हाँव–हाँव अउ खाँव–खाँव....