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"चरन कमल बंदौ हरिराई / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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10:15, 4 अक्टूबर 2007 का अवतरण
चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥१॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥