{{KKRachna
|रचनाकार=नानकदेव
}}{{KKCatPad}}<poem>सूरा एक न आँखिए , जो लड़नि दला में जांय सूरा सोई ‘नानका’ जो मरूण हुकुम रजाए
सूरा एक न आँखिए हिरदे जिनके हरि बसे, जो लड़नि दला में जांय .ते जन कहियहि सूर सूरा कही न सोई जाई ‘नानका’ जो मरूण पूरि हुकुम रजाए .रह्यौ भरपूर
हिरदे जिनके हरि बसे , ते जन कहियहि सूर .कही न जाई ‘नानका’ पूरि रह्यौ भरपूर . मन की दुबिधा ना मिटे , भक्ति कहाँ के होय .कउडी कउड़ी बदले ‘नानका’'नानका', जन्म चल्या नर खोय .</poem>