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"गँग / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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"कबहूँ न भड़ुआ रन चढ़े,कबहूँ न बाजी बंब.
 
"कबहूँ न भड़ुआ रन चढ़े,कबहूँ न बाजी बंब.
  
सकल सभाहि प्रनाम करि,बीड़ा होत कवि गंग."
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सकल सभाहि प्रनाम करि,बिदा होत कवि गंग."
  
 
गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार।
 
गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार।
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            गँग अपने समय के प्रधान कवि माने जाते थे.इनकी कोई पुस्तक अभी तक नहीं मिली है.पुराने संग्रह ग्रंथों में इनके बहुत से कवित्त मिलते हैं.सरल ह्रदय के अतिरिक्त वाग्वैदग्ध्य भी इनमें प्रचुर मात्रा में था.वीर और श्रृंगार रस के बहुत ही रमणीक कवित्त इन्होने कहे हैं. कुछ अन्योक्तियाँ ही बड़ी मार्मिक हैं.

20:12, 22 सितम्बर 2012 का अवतरण

गँग रीतिकालीन काव्य परंपरा के प्रथम महत्वपूर्ण कवि थे। ये इटावा जिले के एकनार गाँव के निवासी थे। इनका मूल नाम गंगाधर था। ये जाति के ब्राह्मण थे तथा अकबर के दरबारी कवि थे। इसके अतिरिक्त ये रहीम, बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल के भी प्रिय थे। ये बडे स्वाभिमानी थे। कहते हैं कि अपनी स्पष्टवादिता के कारण ये जहाँगीर के कोपभाजन हुए और उसने इन्हें हाथी से कुचलवा दिया और उसी समय मरने से पहले इन्होंने यह दोहा कहा था :-

"कबहूँ न भड़ुआ रन चढ़े,कबहूँ न बाजी बंब.

सकल सभाहि प्रनाम करि,बिदा होत कवि गंग."

गुलाब कवि ने इस घटना को लक्ष्य करके कहा था- 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये। कवि के पुत्र ने भी 'गंग को लेन गनेस पठायो कहकर इसी ओर इंगित किया है। गंग की कविता अलंकार और शब्द वैचित्र्य से भरपूर है। साथ ही उसमें सरसता और मार्मिकता भी है। मुख्य ग्रंथ हैं -'गंग पदावली, 'गंग पचीसी तथा 'गंग रत्नावली। भिखारीदासजी ने इनके विषय में कहा है- 'तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार।

           गँग अपने समय के प्रधान कवि माने जाते थे.इनकी कोई पुस्तक अभी तक नहीं मिली है.पुराने संग्रह ग्रंथों में इनके बहुत से कवित्त मिलते हैं.सरल ह्रदय के अतिरिक्त वाग्वैदग्ध्य भी इनमें प्रचुर मात्रा में था.वीर और श्रृंगार रस के बहुत ही रमणीक कवित्त इन्होने कहे हैं. कुछ अन्योक्तियाँ ही बड़ी मार्मिक हैं.