"चेतावनी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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और न अपने भौतिक दृग से देख सकेगा. | और न अपने भौतिक दृग से देख सकेगा. | ||
आकर कवि से दिव्यदृष्टि ले. | आकर कवि से दिव्यदृष्टि ले. |
19:47, 20 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
भारत की यह परम्परा है--
जब नारी के बालों को खींचा जाता है,
धर्मराज का सिंहासन डोला करता है,
क्रुद्ध भीम की भुजा फड़कती,
वज्रघोष मणिपुष्पक औ'सुघोष करते है,
गांडीव की प्रत्यंचा तड़पा करती है;
कहने का तात्पर्य
महाभारत होता है,
अगर कभी झूठी ममता,
दुर्बलता,किंकर्तव्यविमूढ़ता
व्यापा करती,
स्वयं कृष्ण भगवान प्रकट हो
असंदिग्ध औ'स्वतः सिद्धा
स्वर में कहते,
'युध्यस्व भारत.'
भारत की यह परम्परा है--
जब नारी के बालों को खींचा जाता है,
एक महाभारत होता है.
तूने भारत को केवल
रेखांश और अक्षांश जाल में
बद्ध चित्रपट समझ लिया है,
जिसकी कुछ शीर्षस्थ लकीरें,
जब तू चाहे घटा-मिटाकर
अपने नक्शे में दिखला ले ?
हथकडियाँ कड़कड़ा,बेड़ियों को तड़काकर,
अपने बल पर मुक्त, खड़ी
भारत माता का
रूप विराट
मदांध,नहिं तूने देखा है;
(नशा पुराना जल्द नहिं उतरा करता है.
और न अपने भौतिक दृग से देख सकेगा.
आकर कवि से दिव्यदृष्टि ले.
पूरब,पश्चिम,दक्षिण से आ
अगम जलंभर,उच्छल फेनिल
हिंदमहासागर की अगणित
हिल्लोलित,कल्लोलित लहरें
जिन्हें अहर्निश
प्रक्षालित करती रहती हैं,
अविरल,
वे भारत माता के
पुण्य चरण हैं--
पग-नखाग्र कन्याकुमारिका-मंदिर शोभित.
और पूरबी घाट,पश्चिमी घाट
उसी के पिन,पुष्ट,दृढ नघ-पट हैं.
विंध्य-मेखला कसी हुई कटि प्रदेश में.