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जिससे कुछ चौंक पड़ें / फ़िराक़ गोरखपुरी
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16:14, 25 अक्टूबर 2020
ज़ब्त की ताब न थी फिरते ही वो आँख 'फिराक़'.
आज पैमाना-ए-दिल हाथ से छूटा भी कहाँ.
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