भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सोजें-पिनहाँ हो / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह= }} [[Category:ग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
१. गुप्त पीड़ा २. सजल आंखे ३. संगठित ४. जीवन-व्यवस्था ५. अस्त - व्यस्त | १. गुप्त पीड़ा २. सजल आंखे ३. संगठित ४. जीवन-व्यवस्था ५. अस्त - व्यस्त | ||
६. आँखों का इशारा ७. अस्पष्ट ८. अमृत ९. विष १०. सर्वोपरि | ६. आँखों का इशारा ७. अस्पष्ट ८. अमृत ९. विष १०. सर्वोपरि | ||
+ | </poem> |
22:25, 25 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
सोज़े-पिनहाँ१ हो,चश्मे-पुरनम२ हो.
दिल में अच्छा-बुरा कोई ग़म हो.
फिर से तरतीब दें ज़माने को.
ऐ ग़में ज़िन्दगी मुनज़्ज़म३ हो.
इन्किलाब आ ही जाएगा इक रोज़.
और नज़्में-हयात४ बरहम५ हो.
ताड़ लेते हैं हम इशारा-ए-चश्म६.
और मुबहम७ हो, और मुबहम हो.
दर्द ही दर्द की दवा ना बन जाये.
ज़ख्म ही ज़ख्मे-दिल का मरहम हो.
वो कहाँ जाके अपनी प्यास बुझाए.
जिसको आबे- हयात८ सम९ हो.
कीजिये जो जी में आये 'फ़िराक़'.
लेकिन उसकी खुशी मुकद्दम१० हो.
१. गुप्त पीड़ा २. सजल आंखे ३. संगठित ४. जीवन-व्यवस्था ५. अस्त - व्यस्त
६. आँखों का इशारा ७. अस्पष्ट ८. अमृत ९. विष १०. सर्वोपरि