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भोर ही नयोति गई ती तुम्हें वह गोकुल गाँव की ग्वालिनी गोरी. | भोर ही नयोति गई ती तुम्हें वह गोकुल गाँव की ग्वालिनी गोरी. |
10:17, 1 अक्टूबर 2012 का अवतरण
भोर ही नयोति गई ती तुम्हें वह गोकुल गाँव की ग्वालिनी गोरी.
आधिक राति लौं बेनी प्रवीन कहा ढिग राखी करी बरजोरी.
आवै हँसी मोहिं देखत लालन,भाल में दीन्ही महावर घोरी.
एते बड़े ब्रजमंडल में न मिली कहूँ माँगेन्हु रंचक रोरी.