"काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश" के अवतरणों में अंतर
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काल जकी वरदान ही | काल जकी वरदान ही | ||
बणगी आज सराप | | बणगी आज सराप | | ||
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+ | करसो रैगो कळपतो | ||
+ | मन में दरद दबा'र | | ||
+ | भैंत जीवणों हाथ हो | ||
+ | लेगी भूख भगा'र | | ||
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+ | ऊंळै मन सूं भी कदे | ||
+ | नी देखै तू आय | | ||
+ | म्हारो मरुधर बादळी | ||
+ | नीं आयो के दाय | | ||
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+ | दूर उडावै मिनख नै | ||
+ | खुद सांभळ नै डोर | | ||
+ | करै सो मरजी रामजी | ||
+ | उण रो कीं नी जोर | | ||
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+ | बूंद न बरसी बरस में | ||
+ | री उडीक अणमेत | | ||
+ | कैतो डरपी काळ सूं | ||
+ | कै म्हांसूं नीं हेत | | ||
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+ | दोनूं कानी लाग री | ||
+ | बारैं भीतर आग | | ||
+ | लूंठी लू री लाय सूं | ||
+ | घणी पेट री दाझ | | ||
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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी | | यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी | | ||
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10:30, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण
थां सू पैली गज वदन
मूसक रै गल माल |
पोथी री अैई करे
दुरभिख में रिछपाल |
लम्बोदर लाजां मारां
किंया चढ़ावां भोग |
मूसक ताणी भी नहीं
दाणा के संयोग ?
माँ सुरसत वरदान दे
विनती बारम्बार |
बिथा बखाणूं काळ री
देतूं आखर च्यार |
हंस छोड़ मा आवजे
सुरसत सूनै गांव |
थारे उजले हंस नीं
पड़े काळ री छांव |
बालाजी रै देवरे
रात जगाता लोग |
संवत हो तो म्हे करां
सवामणी रो भोग |
जिण बाढ्या इक बाण सूं
रावण रा दस सीस |
नाम जप्यां जासी नहीं
काळ जको बिन सीस |
चिड़ी कमेडी कागला
गांव गया सै छोड़ |
विपदा में कुण साथ दे
सै ले मूंडो मोड़ |
फळसै ऊबी खेजड़ी
जोवे अै दरसाव |
मिनख बापड़ो हारज्या
काळ जीतले दाव |
आभै उमड़ी बादळी
पण पटकी नि छांट |
किस्या जलम री काढ़ ली
अनदाता सूं आंट |
बीज पडै जद कीं उगै
आ धरती री बाण |
बिन पाणी रै के करै
करै तो पाणी पाण |
हुवै लड़ाई जीत ले
मरुधर रा जूझार |
पण इणने कुण टाळदे
आ मालिक री मार |
खेत खळा सूना हुया
सूना हुया गुवाड़ |
नेह चूकगो नैण सूं
तोडै़ बधगी राड़ |
कद धरती रै आवसी
उणियारा पर ओप |
सीळो पड़सी कद बता
जबर काळ रो कोप |
धोरां हाळा देश में
पड़े कदे नी काळ |
हे मालिक अरदास है
आप करो रिछपाळ |
म्हारे मरुधर देस री
राम करो रिछपाल |
आवे नी नेड़े कदे
ताती बळती भाळ |
पगां चालती दीसरी
बा बड़कां री बात |
रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |
जूझै बै जुझार सा
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले
कुण किण सें ज्या हार |
धान निमड्गो कोठले
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में
बची भाग में रेत |
हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही
बणगी आज सराप |
करसो रैगो कळपतो
मन में दरद दबा'र |
भैंत जीवणों हाथ हो
लेगी भूख भगा'र |
ऊंळै मन सूं भी कदे
नी देखै तू आय |
म्हारो मरुधर बादळी
नीं आयो के दाय |
दूर उडावै मिनख नै
खुद सांभळ नै डोर |
करै सो मरजी रामजी
उण रो कीं नी जोर |
बूंद न बरसी बरस में
री उडीक अणमेत |
कैतो डरपी काळ सूं
कै म्हांसूं नीं हेत |
दोनूं कानी लाग री
बारैं भीतर आग |
लूंठी लू री लाय सूं
घणी पेट री दाझ |
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |