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"चीथड़े में हिन्दुस्तान / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ, | मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ, | ||
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है। | हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है। |
18:49, 1 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है।
ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए,
यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है।
एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अँधेरी कोठारी में एक रौशनदान है।
मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम,
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है।
इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके
जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है।
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है।
मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ,
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है।