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|रचनाकार=मीराबाई
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<poem>
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भवसागर से तारे॥
राग सारंग मैं सबका तो नाम न जानूं, कोई कोई नाम उचारे।अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया॥
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी।<br>तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भवसागर से तारे॥<br> मैं सबका तो नाम न जानूं, कोई कोई नाम उचारे।<br>अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा॥<br> ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा।<br>धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया॥<br> सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मनभाया।<br>सदना औ सेना नाई को तुम कीन्हा अपनाई॥<br> करमा की खिचड़ी खाई, तुम गणिका पार लगाई।<br>मीरां प्रभु तुरे रंगराती या जानत सब दुनियाई॥<br>
करमा की खिचड़ी खाई, तुम गणिका पार लगाई।
मीरां प्रभु तुरे रंगराती या जानत सब दुनियाई॥
</poem>
शब्दार्थ :- सुण लीजो = सुन लीजिए। नामा = महाराष्ट्र के भक्त नामदेव।
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