भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घन गरजत बरसत है मिहरा / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
 
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
|
 
 
}}
 
}}
 
{{KKCatPad}}
 
{{KKCatPad}}
 
{{KKAnthologyVarsha}}
 
{{KKAnthologyVarsha}}
 
<poem>
 
<poem>
घन गरजत बरसत है मिहरा |
+
घन गरजत बरसत है मिहरा  
बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा || घन...
+
बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा
दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले |
+
दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले  
पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा || घन...
+
पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा  
सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उडी नैनन ते प्यारी |
+
सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उड़ी नैनन ते प्यारी  
मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा || घन...
+
मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा  
कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे |
+
कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे  
कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा || घन...
+
कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा  
आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू  अलबेला |
+
आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू  अलबेला  
आजा तपन बुझाजा मन की, देखूँ बरसे ये मिहरा || घन...
+
आजा तपन बुझा जा मन की, देखूँ बरसे ये मिहरा  
<poem>
+
</poem>

19:45, 8 जुलाई 2020 का अवतरण

घन गरजत बरसत है मिहरा
बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा
दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले
पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा
सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उड़ी नैनन ते प्यारी
मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा
कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे
कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा
आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू अलबेला
आजा तपन बुझा जा मन की, देखूँ बरसे ये मिहरा