भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल्ली(कविता) / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=दिल्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=दिल्ली / रामधारी सिंह "दिनकर"
 
|संग्रह=दिल्ली / रामधारी सिंह "दिनकर"
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
 
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,

16:05, 14 मार्च 2013 का अवतरण

यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में?

मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!

इस उजाड़ निर्जन खंडहर में, छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर में
तुझे रूप सजाने की सूझी,इस सत्यानाश प्रहर में!

डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया - तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना.

हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इन पर नमक हाय, छिड़कना!

महल कहां बस, हमें सहारा,केवल फूस-फास, तॄणदल का;
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का, गम, आँसू या गंगाजल का.