"अखरावट / पृष्ठ 6 / मलिक मोहम्मद जायसी" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी }} '''मुखपृष्ठ: [[अखरावट / मलिक मोहम्म...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी | |रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category:लम्बी कविता]] | |
'''मुखपृष्ठ: [[अखरावट / मलिक मोहम्मद जायसी]]''' | '''मुखपृष्ठ: [[अखरावट / मलिक मोहम्मद जायसी]]''' | ||
+ | |||
+ | [[अखरावट / पृष्ठ 5 / मलिक मोहम्मद जायसी|<< पिछला भाग]] | ||
20:55, 4 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
मुखपृष्ठ: अखरावट / मलिक मोहम्मद जायसी
दोहा
जिया जंतु जत सिरजा, सब महँ पवन सो पूरि ।
पवनहि पवन जाइ मिलि, आगि,बाउ,जल धूरि ॥
सोरठा
निति सो आयसु होइ, साईं जो आज्ञा करै ॥
पवन-परेवा सोइ, मुहमद बिधि राखे रहै ॥51॥
बड करतार जिवन कर राजा । पवन बिना कछु करत न छाजा ॥
तेहि पवन सौं बिजुरी साजा । ओहि मेघ परबत उपराजा ॥
उहै मेघ सौं निकरि देखावै । उहै माँझ पुनि जाइ छपावै ॥
उहै चलावै चहुँदिसि सोई । जस जस पाँव धरै जो कोई ॥
जहाँ चलावै तहवाँ चलई । जस जस नावै तस तस नवई ॥
वहुरि न आवै छिटकत झाँपै । तेहि मेघ सँग खन खन काँपै ॥
जस पिउ सेवा चूखे रूठै । परै गाज पुहुमी तपि कूटै ॥
दोहा
अगिनि, पानि औ माटी, पवन फूल कर मूल ।
उहई सिरजन कीन्हा, मारि कीन्ह अस्थूल ॥
सोरठा
देखु गुरू, मन चीन्ह, कहाँ जाइ खोजत रहै ।
जानि परै परबीन, मुहमद तेहि सुधि पाइए ॥52॥
चेला चरचत गुरु-गन गावा । खोजत पूछि परम गति पावा ॥
गुरु बिचारि चेला जेहि चीन्हा । उत्तर कहत भरम लेइ लीन्हा ॥
जगमग देख उहै उजियारा । तीनि लोक लहि किरिन पसारा ॥
ओहि ना बरन, न जाति अजाती । चंद न सुरुज; दिवस ना राती ॥
कथा न अहै, अकथ भा रहई । बिना बिचार समुझि का परई ?॥
सोऽहं सोऽहं बसि जो करई । जो बूझै सो धीरज धरई ॥
कहै प्रेम कै बरनि कहानी । जो बूझै सो सिद्धि गियानी ॥
दोहा
माटी कर तन भाँडा, माटी महँ नव खंड ।
जे केहु खेलै माटि कहँ, माटी प्रेम प्रचंड ॥
सोरठा
गलि सोइ माटीं होइ, लिखनेहारा बापुरा ।
जौ न मिटावै कोइ, लिखा रहै बहुतै दिना ॥53॥