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"अपेक्षाएँ / बद्रीनारायण" के अवतरणों में अंतर
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एक रात के गर्भ में सुबह को होना था | एक रात के गर्भ में सुबह को होना था | ||
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एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य लिए | एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य लिए | ||
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एक बालक को जन्म लेना था | एक बालक को जन्म लेना था | ||
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एक चिड़िया में जगनी थी बड़ी उड़ान की महत्त्वाकांक्षाएँ | एक चिड़िया में जगनी थी बड़ी उड़ान की महत्त्वाकांक्षाएँ | ||
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एक पत्थर में न झुकने वाले प्रतिरोध को और बलवती होना था | एक पत्थर में न झुकने वाले प्रतिरोध को और बलवती होना था | ||
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नदी के पानी को कुछ और जिद्दी होना था | नदी के पानी को कुछ और जिद्दी होना था | ||
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खेतों में पकते अनाज को समाज के सबसे अन्तिम आदमी तक | खेतों में पकते अनाज को समाज के सबसे अन्तिम आदमी तक | ||
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पहुँचाने का सपना देखना था | पहुँचाने का सपना देखना था | ||
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पर कुछ नहीं हुआ | पर कुछ नहीं हुआ | ||
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रात के गर्भ में सुबह के होने का भ्रम हुआ | रात के गर्भ में सुबह के होने का भ्रम हुआ | ||
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औरत के पेट से वैसा बालक पैदा न हुआ | औरत के पेट से वैसा बालक पैदा न हुआ | ||
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न जन्मी चिड़िया के भीतर वैसी महत्त्वाकांक्षाएँ | न जन्मी चिड़िया के भीतर वैसी महत्त्वाकांक्षाएँ | ||
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न पत्थर में उस कोटि का प्रतिरोध पनप सका | न पत्थर में उस कोटि का प्रतिरोध पनप सका | ||
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नदी के पानी में जिद्द तो कहीं दिखी ही नहीं | नदी के पानी में जिद्द तो कहीं दिखी ही नहीं | ||
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खेत में पकते अनाजों का | खेत में पकते अनाजों का | ||
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बीच में ही टूट गया सपना | बीच में ही टूट गया सपना | ||
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20:01, 29 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
कई अपेक्षाएँ थीं और कई बातें होनी थीं
एक रात के गर्भ में सुबह को होना था
एक औरत के पेट से दुनिया बदलने का भविष्य लिए
एक बालक को जन्म लेना था
एक चिड़िया में जगनी थी बड़ी उड़ान की महत्त्वाकांक्षाएँ
एक पत्थर में न झुकने वाले प्रतिरोध को और बलवती होना था
नदी के पानी को कुछ और जिद्दी होना था
खेतों में पकते अनाज को समाज के सबसे अन्तिम आदमी तक
पहुँचाने का सपना देखना था
पर कुछ नहीं हुआ
रात के गर्भ में सुबह के होने का भ्रम हुआ
औरत के पेट से वैसा बालक पैदा न हुआ
न जन्मी चिड़िया के भीतर वैसी महत्त्वाकांक्षाएँ
न पत्थर में उस कोटि का प्रतिरोध पनप सका
नदी के पानी में जिद्द तो कहीं दिखी ही नहीं
खेत में पकते अनाजों का
बीच में ही टूट गया सपना
अब क्या रह गया अपना।