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"हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है / 'आसिम' वास्ती" के अवतरणों में अंतर

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मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ से होता है
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हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
सफ़र शुरू यक़ीं का गुमाँ से होता है
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क्या कहें साहिल से कोई राबता पानी का है
  
वहीं कहीं नज़र आता है आप का चेहरा
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ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
तुलू चाँद फ़लक पर जहाँ से होता है
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ये नहीं मालूम था ये रास्ता पानी का है
  
हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं
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आग सी गर्मी अगर तेरे बदन में है तो हो
जब इख़्तिलाफ़ कोई बाग़-बाँ से होता है
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देख मेरे ख़ून में भी वलवला पानी का है
  
मुझे ख़बर ही नहीं थी के इश्क़ का आग़ाज़
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एक सोहनी ही नहीं डूबी मेरी बस्ती में तू
अब इब्तिदा से नहीं दरमियाँ से होता है
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हर मोहब्बत का मुक़द्दर सानेहा पानी का है
  
उरूज पर है चमन में बहार का मौसम
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बे-गुनह भी डूब जाते हैं गुनह-गारों के साथ
सफ़र शुरू ख़िज़ाँ का यहाँ से होता है
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शहर के क़ानून में ये ज़ाबता पानी का है
  
ज़वाल-ए-मौसम-ए-ख़ुश-रंग का गिला ‘आसिम’
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जानता हूँ क्यूँ तुम्हारे बाग़ में खिलते हैं फूल
ज़मीन से तो नहीं आसमाँ से होता है
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बात मेहनत की नहीं ये मोजज़ा पानी का है
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अश्क बहते भी नहीं आसिम ठहरते भी नहीं
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क्या मसाफ़त है ये कैसा क़ाफ़िला पानी का है

00:05, 1 मई 2013 के समय का अवतरण

हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
क्या कहें साहिल से कोई राबता पानी का है

ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
ये नहीं मालूम था ये रास्ता पानी का है

आग सी गर्मी अगर तेरे बदन में है तो हो
देख मेरे ख़ून में भी वलवला पानी का है

एक सोहनी ही नहीं डूबी मेरी बस्ती में तू
हर मोहब्बत का मुक़द्दर सानेहा पानी का है

बे-गुनह भी डूब जाते हैं गुनह-गारों के साथ
शहर के क़ानून में ये ज़ाबता पानी का है

जानता हूँ क्यूँ तुम्हारे बाग़ में खिलते हैं फूल
बात मेहनत की नहीं ये मोजज़ा पानी का है

अश्क बहते भी नहीं आसिम ठहरते भी नहीं
क्या मसाफ़त है ये कैसा क़ाफ़िला पानी का है