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"पावस-प्रभात / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
 
नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
 
 
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
 
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
 
 
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
 
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
 
 
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
 
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
 
 
अर्ध रात्री में खिली हुई थी मालती,
 
अर्ध रात्री में खिली हुई थी मालती,
 
 
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
 
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
 
 
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
 
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
 
 
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।
 
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।
 
  
 
मुक्त व्योम में उड़ते-उड़ते डाल से,
 
मुक्त व्योम में उड़ते-उड़ते डाल से,
 
 
कातर अलस पपीहा की वह ध्वनि कभी
 
कातर अलस पपीहा की वह ध्वनि कभी
 
 
निकल-निकल कर भूल या कि अनजान में,
 
निकल-निकल कर भूल या कि अनजान में,
 
 
लगती हैं खोजनें किसी को प्रेम से।
 
लगती हैं खोजनें किसी को प्रेम से।
 
 
  
 
क्लान्त तारकागण की मद्यप-मंडली
 
क्लान्त तारकागण की मद्यप-मंडली
 
 
नेत्र निमीलन करती हैं फिर खोलती।
 
नेत्र निमीलन करती हैं फिर खोलती।
 
 
रिक्त चपक-सा चन्द्र लुढ़ककर हैं गिरा,
 
रिक्त चपक-सा चन्द्र लुढ़ककर हैं गिरा,
 
 
रजनी के आपानक का अब अंत हैं।
 
रजनी के आपानक का अब अंत हैं।
 
  
 
रजनी के रंजक उपकरण बिखर गये,
 
रजनी के रंजक उपकरण बिखर गये,
 
 
घूँघट खोल उषा में झाँका और फिर
 
घूँघट खोल उषा में झाँका और फिर
 
 
अरुण अपांगों से देखा, कुछ हँस पड़ी,
 
अरुण अपांगों से देखा, कुछ हँस पड़ी,
 
 
लगी टहलने प्राची के प्रांगण में तभी ॥
 
लगी टहलने प्राची के प्रांगण में तभी ॥
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00:18, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण

साँचा:KKCatKavaita

नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
अर्ध रात्री में खिली हुई थी मालती,
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।

मुक्त व्योम में उड़ते-उड़ते डाल से,
कातर अलस पपीहा की वह ध्वनि कभी
निकल-निकल कर भूल या कि अनजान में,
लगती हैं खोजनें किसी को प्रेम से।

क्लान्त तारकागण की मद्यप-मंडली
नेत्र निमीलन करती हैं फिर खोलती।
रिक्त चपक-सा चन्द्र लुढ़ककर हैं गिरा,
रजनी के आपानक का अब अंत हैं।

रजनी के रंजक उपकरण बिखर गये,
घूँघट खोल उषा में झाँका और फिर
अरुण अपांगों से देखा, कुछ हँस पड़ी,
लगी टहलने प्राची के प्रांगण में तभी ॥