भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दर्शन / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | ||
+ | |संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद | ||
}} | }} | ||
− | |||
− | |||
− | |||
जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली। | जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली। |
22:23, 17 अक्टूबर 2007 का अवतरण
जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली।
अद्भूत परिवर्तन यह कैसा हो चला।
निर्मल जल पर सुधा भरी है चन्द्रिका,
बिछल पड़ी, मेरी छोटी-सी नाव भी।
वंशी की स्वर लहरी नीरव व्योम में-
गूँज रही हैं, परिमल पूरित पवन भी-
खेल रहा हैं जल लहरी के संग में।
प्रकृति भरा प्याला दिखलाकर व्योम में-
बहकाती हैं, और नदी उस ओर ही-
बहती हैं। खिड़की उस ऊँचे महल की-
दूर दिखाई देती हैं, अब क्यों रूके-
नौका मेरी, द्विगुणित गति से चल पड़ी।
किन्तु किसी के मुख की छवि-किरणें घनी,
रजत रज्जु-सी लिपटी नौका से वहीं,
बीच नदी में नाव किनारे लग गई।
उस मोहन मुख का दर्शन होने लगा।