भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रिश्ते-2 / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
रंगी परातों से चिह्नित कर
 
रंगी परातों से चिह्नित कर
 
चलते पायल-से रिश्ते
 
चलते पायल-से रिश्ते
हँसी -ठिठोली की अनुगूँजें
+
हँसी-ठिठोली की अनुगूँजें
 
भरते, कलकल-से रिश्ते
 
भरते, कलकल-से रिश्ते
 
  
 
पसली के अंतिम कोने तक
 
पसली के अंतिम कोने तक
पंक्ति 16: पंक्ति 15:
 
हैं ये चंचल-से रिश्ते
 
हैं ये चंचल-से रिश्ते
  
 
 
उमस घुटन की वेला आती
 
उमस घुटन की वेला आती
 
धरती जब अकुलाती है
 
धरती जब अकुलाती है
पंक्ति 22: पंक्ति 20:
 
बरसें बादल -से रिश्ते
 
बरसें बादल -से रिश्ते
  
 
 
पलकों में भर देने वाली
 
पलकों में भर देने वाली
 
उंगली पर रह जाते हैं
 
उंगली पर रह जाते हैं
 
बैठ अलक काली नजरों का
 
बैठ अलक काली नजरों का
 
जल हैं, काजल -से रिश्ते
 
जल हैं, काजल -से रिश्ते
 
  
 
कभी तोड़ देते अपनापन
 
कभी तोड़ देते अपनापन
पंक्ति 33: पंक्ति 29:
 
कभी पकड़ से दूर सरकते
 
कभी पकड़ से दूर सरकते
 
जाते, पागल -से रिश्ते
 
जाते, पागल -से रिश्ते
 +
</poem>

11:07, 16 जुलाई 2013 का अवतरण

रंगी परातों से चिह्नित कर
चलते पायल-से रिश्ते
हँसी-ठिठोली की अनुगूँजें
भरते, कलकल-से रिश्ते

पसली के अंतिम कोने तक
कभी कहकहे भर देते
दिन-रातों की आँख-मिचौनी
हैं ये चंचल-से रिश्ते

उमस घुटन की वेला आती
धरती जब अकुलाती है
घन-अंजन आँखों से चुपचुप
बरसें बादल -से रिश्ते

पलकों में भर देने वाली
उंगली पर रह जाते हैं
बैठ अलक काली नजरों का
जल हैं, काजल -से रिश्ते

कभी तोड़ देते अपनापन
कभी लिपट कर रोते हैं
कभी पकड़ से दूर सरकते
जाते, पागल -से रिश्ते