"पत्ते पत्ते पर शबनम / सुधेश" के अवतरणों में अंतर
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पत्ते पत्ते पर शबनम है | पत्ते पत्ते पर शबनम है | ||
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भीगी भीगी सुबह सुहानी | भीगी भीगी सुबह सुहानी | ||
पल में शबनम उड़ जाएगी | पल में शबनम उड़ जाएगी |
12:33, 8 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
पत्ते पत्ते पर शबनम है
कली कली की आँखें नम हैं
क्या कोई खुल कर रोया है रात में ?
भीगी भीगी सुबह सुहानी
पल में शबनम उड़ जाएगी
कलियों के घूँघट में ख़ुश्बू
पवन हिंडोले चढ जाएगी ।
दिन का नाम दूसरा हलचल
बहरा कर देगा कोलाहल
ऐसे में क्या रक्खा है बात में !
बाहर काला धुँआ धुँआ है
कैसी जलन सिन्धु के तल में
सारा दिन तपता रहता है
आग छिपी सूरज के दिल में ।
घटा घटा छाई मस्ती है
बिजली भी चम चम हंसती है
लेकिन क्यों बादल रोया बरसात में?
संझा की आहट पर आख़िर
दिन के यौवन को ढलना है
स्नेह न हो दीपक में फिर भी
जीवन बाती को जलना है ।
जुगनू राह दिखाने आये
झिंगुर ने भी गीत सुनाए
चन्दा ग़ायब तारों की बारात में ।