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"ईश्वर / विवेक निराला" के अवतरणों में अंतर

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वह सर्वशक्तिमान हो सकता था
 
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झूठा और मक्कार
 
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मूक को वाचाल करने वाला
 
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पुराण-प्रसिद्ध, प्राचीन।
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वह अगम, अगोचर और अचूक
 
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एक निश्छ्ल और निर्मल हँसी को
 
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मैं घॄणा करता हूँ
 
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ऎसी वाहियात सत्ता को
 
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अभी मैं लत्ता करता हूँ।
अभी मैं लत्ता करता हूँ ।
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21:28, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

(अपने गुरू सत्यप्रकाश मिश्र के लिए)

लोग उसे ईश्वर कहते थे ।

वह सर्वशक्तिमान हो सकता था
झूठा और मक्कार
मूक को वाचाल करने वाला
पुराण-प्रसिद्ध, प्राचीन।

वह अगम, अगोचर और अचूक
एक निश्छ्ल और निर्मल हँसी को
ख़तरनाक चुप्पी में बद्ल सकता है।

मैं घॄणा करता हूँ
जो फटकार कर सच बोलने
वाली आवाज़ घोंट देता है।

ऎसी वाहियात सत्ता को
अभी मैं लत्ता करता हूँ।