भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अमरीकन भौजी / महेश चंद्र द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=महेश चंद्र द्विवेदी
 
|रचनाकार=महेश चंद्र द्विवेदी
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
फून आवा है कि अबकि होरी पर ऐहैं भौजी अमरीका वाली‚
 
फून आवा है कि अबकि होरी पर ऐहैं भौजी अमरीका वाली‚
 
गोरी भौजी के आवन की खबर सुन‚ सनक गै हमार घरवाली।
 
गोरी भौजी के आवन की खबर सुन‚ सनक गै हमार घरवाली।

10:31, 17 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

फून आवा है कि अबकि होरी पर ऐहैं भौजी अमरीका वाली‚
गोरी भौजी के आवन की खबर सुन‚ सनक गै हमार घरवाली।
बोली–"पहिलवै कौन कम सांसत रहै‚ पड़ौसन लौ टले न टाली‚
तुम्हरे संग घुलमिल के रंग खेलैं‚ दूर दूर की सलहज औ साली।"

उहिके मन मा घोर संसय जाग‚ यहि से ऊ चिहूंक चिहुंक चलै लाग‚
कहै–"कैसे सपरिहै? नौकर तो सराब पी औंधे मुंह पड़े हुईहैं नाली"
मन मा सोचे–" इनका रिझावन का कौन कम है – सांवली और काली"‚
तब से अब रोज गालन पै पौडर – लाली लगाय‚ निरखै कानन की बाली।

हमार लॉन लौ अमरीकन लागै लाग‚ मटकै लाग माली मनमौजी‚
है तो ऊ नामी कामचोर‚ पर है नये – नये फूल – पत्तिन का खोजी।
बौराय गवा – गेंदन बिच भांग लगाइस‚ और गुलाबन बिच कलौंजी‚
क्यारिन बिच नाचे – गावै‚ यहि बरस अइहैं हमरी अमरीकन भौजी।

होरी के दिन जीन्स – टाप – बेल्ट पहिने‚ फाट पड़ी अमरीकन भौजी‚
गजगामिनी की जीवित मिसाल‚ ऊपर से बाल कटवाय रहैं फौजी।
पहली बार होरी केर हुड़दंग देख‚ उंमंग में आइके कूद पड़ी हौजी‚
तब हमार ऊ हंसके बोली‚ "हाय‚ होरी पै हुरियाय गईं अमरीकन भौजी।"