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<poem>
नयनामृत के भरे कलश, क्या बनोगे प्रिय तुम मधुशाला
मैं जो बन जाऊं मोती , क्या बनोगे तुम मोती माला
मैं हार बनूँ
सिंगार बनूँ
मैं प्रीत बनूँ, मनुहार बनूँ
सत तत्व बनूँ , निराकार बनूँ
तन की मैं डालूं समिधा, क्या बनोगे तुम मन की ज्वाला
मैं अर्थ बनूँ
मैं सार बनूँ
स्वर साज बनूँ , झंकार बनूँ मैं सुधा बनूँ , रसधार बनूँ
मैं सप्तपदी के वचन बनूँ, क्या बनोगे तुम डमरू वाला
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