भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रोकि द लड़ाई / सीतारामचन्द्र शरण ‘राम’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem> हथ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=सीतारामचन्द्र शरण ‘राम’
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

14:01, 31 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

हथियार के बढ़ंती
हथिहार बढ़ि रहल बा ;
ई आदमी बा मूरूख
हाथे लड़ि रहल बा।
हथियार जीति ली का
ना आदमी सम्हारे?
हथियार का मुआई
जो आदमी ना मारे?
खतरा बा बादमी से
हथियार से का खतरा?
जो खून के पियासल
चाहेला खून-खतरा।
जान बचावेला
ऊहे सदा जियेला ;
ले जान अनकर
अमिरित कहाँ पियेला?
नाहिं त आदमी का
ऊ जानवर कहाई,
जे आदमी के देखी
त चीरि-फारि खाई।
मन सोच ई, धरा पर
कुछ जीत-हार होला
जे मारेला मुए न
मुअला से हार होला
ए आदमी तू जाग
जनि कफन मुँह लपेट
आ आदमी के जिनिगी
जनि नीन में समेटऽ
ए आदमी कमा लऽ
कुछ नाम कामे आई
गुन तोहरे सभे गाई
जो रोकि दऽ लड़ाई