भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छू आई बादल के गांव / मानोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('<poem>छू आई बादल के गाँव | बहुत दिनों के बाद सखी री, उमड़ ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>छू आई बादल के गाँव | | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=मानोशी | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | छू आई बादल के गाँव | | ||
बहुत दिनों के | बहुत दिनों के |
07:43, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण
छू आई बादल के गाँव |
बहुत दिनों के
बाद सखी री,
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी,
बीते मौसम में हो आई,
धो आई मैं स्मृति के ठाँव |
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी,
बस इक क्षण की
बनी सहचरी ,
फिर पायल बन रुनझुन में ढल,
सज गई दो सखियन के पांव |
मछली कंटक
फँसी मचलती,
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती,
साजन जो बिछड़े इस सावन,
हृदय प्राण सब लग गये दांव |
छू आई बादल के गाँव ।