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तुम खों छोड़न नहि विचारें | तुम खों छोड़न नहि विचारें |
18:24, 13 जुलाई 2008 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
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तुम खों छोड़न नहि विचारें
भरवौ लों अख्तयारें
जब ना हती, कछू कर घर की, रए गरे में डारें
अब को छोड़ें देत, प्रान में प्यारी भई हमारें
लगियो न भरमाए काऊ के, रैयो सुरत सम्भारें
ईसुर चाएँ तुमारे पीछें, घलें सीस तलवारें
भावार्थ
तुम्हें छोड़ने का मेरा कोई विचार नहीं है, चाहे मरना पड़ जाए । मैं तुम्हें तब से गले में डाले हुए हूँ, जब तुम जवान
नहीं थीं और पुरुष के आनन्द की चीज़ नहीं थीं । अब तो तुम यौवन की मालकिन हो । अब, भला, कैसे छोड़ूंगा तुम्हें ।
अब तो तुम मेरे मन-प्राण में बसी हुई हो । बस, अब तुम्हें कोई कितना भी भरमाए, उसके भरमाए में मत आना ।
चाहें तुम्हारे पीछे तलवारें चल जाएँ और सिर कट जाएँ । लेकिन ईसुर को अब किसी बात की परवाह नहीं है ।