भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अखिल भारतीय लुटेरा / विष्णु नागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर }} (१)<br> दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था<br...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=विष्णु नागर
 
|रचनाकार=विष्णु नागर
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
(१)
 +
दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
 +
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था
 +
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
 +
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
 +
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
 +
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
 +
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए
  
(१)<br>
+
और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
 +
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।
  
दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था<br>
+
(२)
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था<br>
+
लूट के इतने तरीके हैं
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था<br>
+
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था<br>
+
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था<br>
+
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि<br>
+
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए<br><br>
+
  
और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं<br>
+
(३)
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।<br><br>
+
लूट का धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
 +
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
 +
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
 +
वरना वह लुट कर चला आता है
 +
और एक कप चाय लेकर टी.वी. देखते हुए
 +
अपनी थकान उतारता है।
  
()<br>
+
()
 +
जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
 +
वह लुटेरा न हो
 +
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
 +
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
 +
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
 +
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।
  
लूट के इतने तरीके हैं<br>
+
(५)
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं<br>
+
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं<br>
+
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि<br>
+
फलां जगह फलां दिन फलां समय
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।<br><br>
+
और लुटेरों को भी लूटने चले आते हैं
 +
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
 +
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
 +
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
 +
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।
  
(३)<br>
+
(6)
 
+
होते-होते एक दिन इतने लुटेरे हो गए कि
लूट का धंधा इतना संस्थागत हो चुका है<br>
+
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है<br>
+
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए<br>
+
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
वरना वह लुट कर चला आता है<br>
+
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भी रोने लगे
और एक कप चाय लेकर टी.वी. देखते हुए<br>
+
अपनी थकान उतारता है।<br><br>
+
 
+
(४)<br>
+
 
+
जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो<br>
+
वह लुटेरा न हो<br>
+
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है<br>
+
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है<br>
+
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि<br>
+
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।<br><br>
+
 
+
(५)<br>
+
 
+
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि<br>
+
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो<br>
+
फलां जगह फलां दिन फलां समय<br>
+
और लुटेरों को भी लूटने चले आते हैं<br>
+
ठट्ठ के ठट्ठ लोग<br>
+
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही<br>
+
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं<br>
+
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।<br><br>
+
 
+
(6)<br>
+
 
+
होते-होते एक दिन इतने लुटेरे हो गए कि<br>
+
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा<br>
+
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि<br>
+
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं<br>
+
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भी रोने लगे<br>
+
 
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।
 
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।
 +
</poem>

03:57, 15 जून 2016 के समय का अवतरण

(१)
दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए

और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।

(२)
लूट के इतने तरीके हैं
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।

(३)
लूट का धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
वरना वह लुट कर चला आता है
और एक कप चाय लेकर टी.वी. देखते हुए
अपनी थकान उतारता है।

(४)
जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
वह लुटेरा न हो
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।

(५)
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चले आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।

(6)
होते-होते एक दिन इतने लुटेरे हो गए कि
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भी रोने लगे
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।