भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छोड़ दी पतवार / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार। | आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार। | ||
− | यत्न कर- | + | यत्न कर-कर थक चुका हूँ |
नाव आगे नहीं बढ़्ती- | नाव आगे नहीं बढ़्ती- | ||
और सारा बल मिटा है | और सारा बल मिटा है |
22:47, 5 मार्च 2014 के समय का अवतरण
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
यत्न कर-कर थक चुका हूँ
नाव आगे नहीं बढ़्ती-
और सारा बल मिटा है
भाग्य में मरना बदा है-
सोच कर सूने नयन ने छोड़ दी जलधार।
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
क्यों न हो उसको निराशा
जिसे जीवन में सदा ही-
खिलाती थी मधुर आशा
पर नियति का क्या तमाशा-
पार लेने चला था, पर हाँ! मिली मँझधार।
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
किन्तु है तू तो अरे! नर
बैठता क्यों हार हिम्मत
छोड़ आशा का सबल कर
उठ, जरा तो कमर कसकर
देख पग-२ पर लहरियाँ ही बनेंगी पार।
और यह तूफ़ान क्षण में ही बनेगा छार।
माँझी, छोड़ मत पतवार!