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"याद / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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12:13, 18 मार्च 2014 का अवतरण

 क्या रहे और हो गये अब क्या।

याद यह बार बार कहती है।

सोच में रात बीत जाती है।

आँख छत से लगी ही रहती है।

हुन बरसता था, अमन था, चैन था।

था फला-फूला निराला राज भी।

वह समाँ हम हिन्दुओं के ओज का।

आँख में है घूम जाता आज भी।

वे हमारे अजीब धुनवाले।

सब तरह ठीक जो उतरते थे।

आज जो हैं कमाल के पुतले।

काल उन के कभी कतरते थे।

जब रहे रात दिन हमारे वे।

पाँव जब धाक चूम जाती है।

क्या रहे और तब रहे वै+से।

अब न वह बात याद आती है।

हैं पटकते कलप कलप उठते।

याद कर राज पाट खोना हम।

होठ को चाट चाट लेते हैं।

देख दिल का उचाट होना हम।

जो कि दमदार थे बड़े उन को।

धूल में था मिला दिया दम में।

थे दिलाबर कभी हमीं जग में।

थी बड़ी ही दिलावरी हम में।

साँसतों का सगा सितम पुतला।

कब हमें मानता न यम सा था।

थी दिलेरी बहुत बड़ी हम में।

कौन जग में दिलेर हम सा था।