भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एका की कमी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page एका की कमी to एका की कमी / हरिऔध) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:14, 18 मार्च 2014 का अवतरण
धुन हमारी अलग रही बँधाती।
एक ही राग कब हमें भाया।
जाति रँग में ढले पदों को भी।
कब गले से गला मिला गाया।
दम सुनाने में नहीं जिस के रहा।
है नहीं उस की सुनी जाती कहीं।
खोलते तो कान वै+से खोलते।
एक सुर से बोलते ही जब नहीं।
है समाई न एक धुन अब तक।
दिल हिले तो भला हिले वै+से।
वु+छ न वु+छ है कसर मिलाने में।
सुर मिले तो भला मिले वै+से।
तो समय पर चूकते हम किस तरह।
जो समय की रंगतें पहचानते।
कौन सुर से सुर मिलाता तब नहीं।
सुर अगर सुर से मिलाना जानते।
बात कहते अगर नहीं बनती।
तो भला था यही कि चुप रहते।
सुर सदा है अलग अलग रहता।
एक सुर से कभी नहीं कहते।