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"सुधार की बातें / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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तब भला क्या सुधार सकेंगे हम।
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जब कि सुनते सुधार नाम जले।
 
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देखने के समय कसर अपनी।
 
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छा गया जब अँधेरा आँख तले।
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अनसुनी कर सुधार की बातें।
 
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कूढ़ कैसे भला कहलवा लें।
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खोट रह जायगी उसे न सुने।
 
खोट रह जायगी उसे न सुने।
 
 
कान का खोंट हम निकलवा लें।
 
कान का खोंट हम निकलवा लें।
  
 
जो जियें जाति को निहार जियें।
 
जो जियें जाति को निहार जियें।
 
 
जो मरें जाति को उबार मरें।
 
जो मरें जाति को उबार मरें।
 
 
है यही तो सुधार की बातें।
 
है यही तो सुधार की बातें।
 
 
कान क्यों बार बार बन्द करें।
 
कान क्यों बार बार बन्द करें।
  
 
पार हो नाव डूबती जिस से।
 
पार हो नाव डूबती जिस से।
 
 
जब नहीं ब्योंत वे बता देते।
 
जब नहीं ब्योंत वे बता देते।
 
 
तब सुने नाम ही सुधारों का।
 
तब सुने नाम ही सुधारों का।
 
 
लोग क्यों जीभ हैं दबा लेते।
 
लोग क्यों जीभ हैं दबा लेते।
  
 
हर तरह की बिगाड़ की बातें।
 
हर तरह की बिगाड़ की बातें।
 
 
हैं दिलों में सुधार बन पैठी।
 
हैं दिलों में सुधार बन पैठी।
 
 
सब घरों में खड़े बखेड़े हैं।
 
सब घरों में खड़े बखेड़े हैं।
 
 
फूट है पाँव तोड़ कर बैठी।
 
फूट है पाँव तोड़ कर बैठी।
 
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10:42, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

तब भला क्या सुधार सकेंगे हम।
जब कि सुनते सुधार नाम जले।
देखने के समय कसर अपनी।
छा गया जब अँधेरा आँख तले।

अनसुनी कर सुधार की बातें।
कूढ़ कैसे भला कहलवा लें।
खोट रह जायगी उसे न सुने।
कान का खोंट हम निकलवा लें।

जो जियें जाति को निहार जियें।
जो मरें जाति को उबार मरें।
है यही तो सुधार की बातें।
कान क्यों बार बार बन्द करें।

पार हो नाव डूबती जिस से।
जब नहीं ब्योंत वे बता देते।
तब सुने नाम ही सुधारों का।
लोग क्यों जीभ हैं दबा लेते।

हर तरह की बिगाड़ की बातें।
हैं दिलों में सुधार बन पैठी।
सब घरों में खड़े बखेड़े हैं।
फूट है पाँव तोड़ कर बैठी।