भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एका की कमी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page एका की कमी to एका की कमी / हरिऔध) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | धुन हमारी अलग रही बँधती। | |
− | + | ||
एक ही राग कब हमें भाया। | एक ही राग कब हमें भाया। | ||
− | + | जाति रंग में ढले पदों को भी। | |
− | जाति | + | |
− | + | ||
कब गले से गला मिला गाया। | कब गले से गला मिला गाया। | ||
दम सुनाने में नहीं जिस के रहा। | दम सुनाने में नहीं जिस के रहा। | ||
− | |||
है नहीं उस की सुनी जाती कहीं। | है नहीं उस की सुनी जाती कहीं। | ||
− | + | खोलते तो कान कैसे खोलते। | |
− | खोलते तो कान | + | |
− | + | ||
एक सुर से बोलते ही जब नहीं। | एक सुर से बोलते ही जब नहीं। | ||
है समाई न एक धुन अब तक। | है समाई न एक धुन अब तक। | ||
− | + | दिल हिले तो भला हिले कैसे। | |
− | दिल हिले तो भला हिले | + | कुछ न कुछ है कसर मिलाने में। |
− | + | सुर मिले तो भला मिले कैसे। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | सुर मिले तो भला मिले | + | |
तो समय पर चूकते हम किस तरह। | तो समय पर चूकते हम किस तरह। | ||
− | |||
जो समय की रंगतें पहचानते। | जो समय की रंगतें पहचानते। | ||
− | |||
कौन सुर से सुर मिलाता तब नहीं। | कौन सुर से सुर मिलाता तब नहीं। | ||
− | |||
सुर अगर सुर से मिलाना जानते। | सुर अगर सुर से मिलाना जानते। | ||
बात कहते अगर नहीं बनती। | बात कहते अगर नहीं बनती। | ||
− | |||
तो भला था यही कि चुप रहते। | तो भला था यही कि चुप रहते। | ||
− | |||
सुर सदा है अलग अलग रहता। | सुर सदा है अलग अलग रहता। | ||
− | |||
एक सुर से कभी नहीं कहते। | एक सुर से कभी नहीं कहते। | ||
</poem> | </poem> |
15:50, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण
धुन हमारी अलग रही बँधती।
एक ही राग कब हमें भाया।
जाति रंग में ढले पदों को भी।
कब गले से गला मिला गाया।
दम सुनाने में नहीं जिस के रहा।
है नहीं उस की सुनी जाती कहीं।
खोलते तो कान कैसे खोलते।
एक सुर से बोलते ही जब नहीं।
है समाई न एक धुन अब तक।
दिल हिले तो भला हिले कैसे।
कुछ न कुछ है कसर मिलाने में।
सुर मिले तो भला मिले कैसे।
तो समय पर चूकते हम किस तरह।
जो समय की रंगतें पहचानते।
कौन सुर से सुर मिलाता तब नहीं।
सुर अगर सुर से मिलाना जानते।
बात कहते अगर नहीं बनती।
तो भला था यही कि चुप रहते।
सुर सदा है अलग अलग रहता।
एक सुर से कभी नहीं कहते।