भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समय! धीरे धीरे चल / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लावण्या शाह }} समय ! धीरे धीरे चल ! <br><br> कितने हैँ बाकी का...)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
समय ! धीरे धीरे चल ! <br><br>
 
समय ! धीरे धीरे चल ! <br><br>
  
कितने हैँ बाकी काम अभी,<br>
+
कितने हैं बाकी काम अभी,<br>
 
कुछ तुझको भी है ध्यान ?<br>
 
कुछ तुझको भी है ध्यान ?<br>
सब तुझसे बँध कर चलते हैँ<br>
+
सब तुझसे बंध कर चलते हैं<br>
उन्हेँ भी याद कर , नादान!<br>
+
उन्हें भी याद कर , नादान!<br>
 
ओ समय ! धीरे धीरे चल ! <br><br>
 
ओ समय ! धीरे धीरे चल ! <br><br>
  
जो बिछडे साथी हैँ उनका भी<br>
+
जो बिछडे साथी हैं उनका भी<br>
 
कर लिहाज धर बाँह सभी,<br>
 
कर लिहाज धर बाँह सभी,<br>
 
भूखे, प्यासे मानव दल का,<br>
 
भूखे, प्यासे मानव दल का,<br>
 
बनना होगा विश्वास अभी -<br>
 
बनना होगा विश्वास अभी -<br>
ओ समय ! धीरे धीर चल!<br><br>
+
ओ समय ! धीरे धीरे चल!<br><br>
  
 
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,<br>
 
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,<br>
शोर शराबे भरी गलियोँ मेँ,<br>
+
शोर शराबे भरी गलियों में,<br>
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रँग रेली हो,<br>
+
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,<br>
 
क्या उनसे ही हो बात सभी ?<br>
 
क्या उनसे ही हो बात सभी ?<br>
ओ समय ! धीरे धीर चल !<br><br>
+
ओ समय ! धीरे धीरे चल !<br><br>
  
 
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,<br>
 
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,<br>
राह तकेँ राजा रँक, यही रीत!<br>
+
राह तकें राजा रंक, यही रीत!<br>
तज पुरानी गाथाओँ के इतिहास,<br>
+
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,<br>
रच आज कोई नव शौर्य गान!<br>
+
रच आज कोई नव शौर्यगान!<br>
ओ समय ! धीरे धीर चल!<br><br>
+
ओ समय ! धीरे धीरे चल!<br><br>
  
 
इस पृथ्वी पट पर तू है,<br>
 
इस पृथ्वी पट पर तू है,<br>
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
सँवार रे, नये बरस को,<br>
 
सँवार रे, नये बरस को,<br>
 
हो सुखमय, ये जग सारा!<br>
 
हो सुखमय, ये जग सारा!<br>
ओ समय ! धीरे धीर चल !
+
ओ समय ! धीरे धीरे चल !

01:07, 4 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण

समय ! धीरे धीरे चल !

कितने हैं बाकी काम अभी,
कुछ तुझको भी है ध्यान ?
सब तुझसे बंध कर चलते हैं
उन्हें भी याद कर , नादान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !

जो बिछडे साथी हैं उनका भी
कर लिहाज धर बाँह सभी,
भूखे, प्यासे मानव दल का,
बनना होगा विश्वास अभी -
ओ समय ! धीरे धीरे चल!

ना व्यर्थ गँवाना अपने को,
शोर शराबे भरी गलियों में,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीरे चल !

तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!

इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !