"उषाकाल की भव्य शान्ति / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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आसन्न-पतन, बिन जमी ओस की अन्तिम | आसन्न-पतन, बिन जमी ओस की अन्तिम | ||
ईषत्करण, स्निग्ध, कातर शीतलता | ईषत्करण, स्निग्ध, कातर शीतलता | ||
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दूर किसी मीनार-क्रोड़ से मुल्ला का | दूर किसी मीनार-क्रोड़ से मुल्ला का | ||
− | एक रूप पर अनेक भावोद्दीपक गम्भीरऽर आऽह्वाऽन : | + | एक रूप पर अनेक भावोद्दीपक गम्भीरऽर आऽह्वाऽन: |
'अस्सला तु ख़ैरम्मिनिन्ना:' | 'अस्सला तु ख़ैरम्मिनिन्ना:' | ||
निकट गली में | निकट गली में | ||
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और गली के छप्पर-तल में | और गली के छप्पर-तल में | ||
शिशु का तुमक-तुनक कर रोना, मातृ-वक्ष को आतुर। | शिशु का तुमक-तुनक कर रोना, मातृ-वक्ष को आतुर। | ||
− | ऊपर व्याप्त ओर-छोर मुक्त नीऽलाकाऽश : | + | ऊपर व्याप्त ओर-छोर मुक्त नीऽलाकाऽश: |
दो अनथक अपलक-द्युति ग्रह, | दो अनथक अपलक-द्युति ग्रह, |
13:32, 12 मई 2014 के समय का अवतरण
निविडाऽन्धकार को मूर्त रूप दे देने वाली
एक अकिंचन, निष्प्रभ, अनाहूत, अज्ञात द्युति-किरण:
आसन्न-पतन, बिन जमी ओस की अन्तिम
ईषत्करण, स्निग्ध, कातर शीतलता
अस्पृष्ट किन्तु अनुभूत:
दूर किसी मीनार-क्रोड़ से मुल्ला का
एक रूप पर अनेक भावोद्दीपक गम्भीरऽर आऽह्वाऽन:
'अस्सला तु ख़ैरम्मिनिन्ना:'
निकट गली में
किसी निष्करुण जन से बिन कारण पदाक्रान्त पिल्ले की
करुण रिरियाहट
और गली के छप्पर-तल में
शिशु का तुमक-तुनक कर रोना, मातृ-वक्ष को आतुर।
ऊपर व्याप्त ओर-छोर मुक्त नीऽलाकाऽश:
दो अनथक अपलक-द्युति ग्रह,
रात-रात में नभ का आधा व्यास पार कर
फिर भी नियति-बद्ध, अग्रसर।
उषाकाल: अनायास उठ गया चेतना से निद्रा का आँचल
मिला न पर पार्थक्य: पड़ा मैं स्तब्ध, अचंचल,
मैं ही हूँ वह पदाक्रान्त रिरियाता कुत्ता-
मैं ही वह मीनार-शिखर का प्रार्थी मुल्ला
मैं वह छप्पर-तल का अहंलीन शिशु-भिक्षुक-
और, हाँ, निश्चय, मैं वह तारक-युग्म
अपलक-द्युति अनथक-गति, बद्ध-नियति
जो पार किये जा रहा नील मरु प्रांगण नभ का!
मैं हूँ ये सब, ये सब मुझ में जीवित-
मेरे कारण अवगत, मेरे चेतन में अस्तित्व-प्राप्त!
उषाकाल
उषाकाल की रहस्यमय भव्य शान्ति...