भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उद्बोधन / महावीर प्रसाद ‘मधुप’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(पन्ने को खाली किया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=महावीर प्रसाद 'मधुप'
 +
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=माटी अपने देश की / महावीर प्रसाद 'मधुप'
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
करो अध्यात्म-सुध का पान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
रखो मन में न भावना हीन,
 +
न समझो तुम अपने को दीन,
 +
रहे मुख-मंडल नहीं मलीन,
 +
रहो शुभ चिंतन में लवलीन,
 +
ईश की बनो श्रेष्ठ संतान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
  
 +
न कोई फटके पास विकार,
 +
पनपते रहें सदा सुविचार,
 +
सभी से हो निश्छल व्यवहार,
 +
सतत हो प्राणिमात्र से प्यार,
 +
रहे कर्त्तव्यों का ध्रुव-ध्यान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
न डरना देख समय विपरीत,
 +
कभी है हार, कभी है जीत,
 +
लौट कर आता नहीं अतीत,
 +
निभाना वर्तमान से प्रीत
 +
पंथ पर पाँव रहें गतिमान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
धैर्य का दामन कर में थाम,
 +
साधनारत रहना वसु याम,
 +
कर्म करते रहना निष्काम,
 +
निबल के रक्षक होते राम,
 +
न सब दिन होते एक समान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
भाग्य होता श्रम से अनुकूल,
 +
पराश्रित होना भारी भूल,
 +
राह में फूल मिलें या शूल,
 +
निरंतर चलना है सुखमूल,
 +
निशा जाती, दे स्वर्ण-विहान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
सदा रसना में मधुरस घोल,
 +
बोलना सबसे मीठे बोल,
 +
मिला मानव-जीवन अनमोल,
 +
गँवाना इसे न कौड़ी मोल,
 +
यही है उन्नति का सोपान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
सुझाया जो पुरखों ने पंथ,
 +
नियम सिखलाते जो सद्ग्रन्थ,
 +
उन्हीं पर श्रद्धा लिए अनन्त,
 +
निभाते रहो आयु-पर्यन्त,
 +
समझ कर साथी निज भगवान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
 +
अहर्निश अर्जित करो विवेक,
 +
करो सत्कर्मों का अभिषेक,
 +
एक हो लगन एक हो टेक,
 +
जियो दुनिया में बन कर नेक,
 +
सफलता पाकर बनो महान।
 +
महकने दो जीवन-उद्यान।।
 +
</poem>

23:36, 17 जून 2014 के समय का अवतरण

करो अध्यात्म-सुध का पान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।
रखो मन में न भावना हीन,
न समझो तुम अपने को दीन,
रहे मुख-मंडल नहीं मलीन,
रहो शुभ चिंतन में लवलीन,
ईश की बनो श्रेष्ठ संतान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

न कोई फटके पास विकार,
पनपते रहें सदा सुविचार,
सभी से हो निश्छल व्यवहार,
सतत हो प्राणिमात्र से प्यार,
रहे कर्त्तव्यों का ध्रुव-ध्यान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

न डरना देख समय विपरीत,
कभी है हार, कभी है जीत,
लौट कर आता नहीं अतीत,
निभाना वर्तमान से प्रीत
पंथ पर पाँव रहें गतिमान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

धैर्य का दामन कर में थाम,
साधनारत रहना वसु याम,
कर्म करते रहना निष्काम,
निबल के रक्षक होते राम,
न सब दिन होते एक समान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

भाग्य होता श्रम से अनुकूल,
पराश्रित होना भारी भूल,
राह में फूल मिलें या शूल,
निरंतर चलना है सुखमूल,
निशा जाती, दे स्वर्ण-विहान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

सदा रसना में मधुरस घोल,
बोलना सबसे मीठे बोल,
मिला मानव-जीवन अनमोल,
गँवाना इसे न कौड़ी मोल,
यही है उन्नति का सोपान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

सुझाया जो पुरखों ने पंथ,
नियम सिखलाते जो सद्ग्रन्थ,
उन्हीं पर श्रद्धा लिए अनन्त,
निभाते रहो आयु-पर्यन्त,
समझ कर साथी निज भगवान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

अहर्निश अर्जित करो विवेक,
करो सत्कर्मों का अभिषेक,
एक हो लगन एक हो टेक,
जियो दुनिया में बन कर नेक,
सफलता पाकर बनो महान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।