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"हाथी और चूहा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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दुनियाँ वालों को भी यह सब, | दुनियाँ वालों को भी यह सब, | ||
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एक गरीब को मारा|</poem> | एक गरीब को मारा|</poem> |
10:16, 30 जून 2014 के समय का अवतरण
दो चूहों को मिले सड़क पर,
काले हाथी दादा|
उन्हें देख बोला इक चूहा
क्या है यार इरादा?
कई दिनों से हाथ सुस्त हैं,
कसरत ना हो पाई|
क्यों ना हम हाथी दादा की,
कर दें आज धुनाई|
बोला तभी दूसरा चूहा,
उचित नहीं यह भाई|
किसी अकेले से दो मिलकर,
कर दे हाथापाई
दुनियाँ वालों को भी यह सब,
होगा नहीं गवारा|
लोग कहेंगे दो सेठों ने,
एक गरीब को मारा|