"झीने भरोसे पर / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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हमारी ज़िन्दगी प्यासी | हमारी ज़िन्दगी प्यासी | ||
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कि तुम भी हो । | कि तुम भी हो । | ||
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सिमटता धूप का आँगन | सिमटता धूप का आँगन | ||
अन्धेरा झर रहा छन-छन | अन्धेरा झर रहा छन-छन | ||
− | + | तुम्हीं कह दो कि कब तक दूँ तसल्ली — | |
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थके मज़दूर-सा तम | थके मज़दूर-सा तम | ||
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खड़ी हूँ मूर्त्ति-सी प्रियवर | खड़ी हूँ मूर्त्ति-सी प्रियवर | ||
इसी झीने भरोसे पर | इसी झीने भरोसे पर | ||
− | + | कि पल भर देख लो तुम अधजली इस — | |
मोमबत्ती को । | मोमबत्ती को । | ||
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20:29, 20 जुलाई 2014 का अवतरण
किसी अतुकान्त कविता-सी
हमारी ज़िन्दगी प्यासी
तुम्हारे छन्द में बँध जाए तो जानूँ —
कि तुम भी हो ।
मिलन की पँक्ति क्यों छोटी
विरह की दूर तक फैली
सुबह से प्रश्न-सी पथ पर
झुकी है दृष्टि मटमैली
सिमटता धूप का आँगन
अन्धेरा झर रहा छन-छन
तुम्हीं कह दो कि कब तक दूँ तसल्ली —
अनमने जी को ।
थके मज़दूर-सा तम
खटखटाता बन्द दरवाज़े
तुम्हें आवाज़ पर आवाज़
देते घाव ये ताज़े
खड़ी हूँ मूर्त्ति-सी प्रियवर
इसी झीने भरोसे पर
कि पल भर देख लो तुम अधजली इस —
मोमबत्ती को ।