भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोजी रोटी की खातिर / शशि पुरवार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पुरवार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Shashi Purwar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
हेलमेल की बहती धारा | हेलमेल की बहती धारा | ||
− | बना | + | बना न, कोई सेतु पुराना |
नये नये टीले पर पंछी | नये नये टीले पर पंछी | ||
नित करते हैआना जाना | नित करते हैआना जाना |
13:24, 10 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
रोजी रोटी की खातिर,फिर
चलने का दस्तूर निभाये
क्या छोड़े, क्या लेकर जाये
नयी दिशा में कदम बढ़ाये।
चिलक चिलक करता है मन
बंजारों का नहीं संगमन
दो पल शीतल छाँव मिली, तो
तेज धूप का हुआ आगमन
चिंता ज्वाला घेर रही है
किस कंबल से इसे बुझाये।
हेलमेल की बहती धारा
बना न, कोई सेतु पुराना
नये नये टीले पर पंछी
नित करते हैआना जाना
बंजारे कदमो से कह दो
बस्ती में अब दिल न लगाये।
क्या खोया है, क्या पाया है
समीकरण में उलझे रहते
जीवन बीजगणित का परचा
नितदिन प्रश्न बदलते रहते
अवरोधों के सारे कोष्टक
नियत समय पर खुलते जाये।