भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"व्यर्थ / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा । | कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा । | ||
मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा॥ | मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा॥ | ||
− | <poem> | + | </poem> |
12:08, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
काका या संसार में, व्यर्थ भैंस अरु गाय ।
मिल्क पाउडर डालकर पी लिपटन की चाय ॥
पी लिपटन की चाय साहबी ठाठ बनाओ ।
सिंगल रोटी छोड़ डबल रोटी तुम खाओ ॥
कहँ ‘काका' कविराय, पैंट के घुस जा अंदर ।
देशी बाना छोड़ बनों अँग्रेजी बन्दर ॥
जप-तप-तीरथ व्यर्थ हैं, व्यर्थ यज्ञ औ योग ।
करज़ा लेकर खाइये नितप्रति मोहन भोग ॥
नितप्रति मोहन भोग, करो काया की पूजा ।
आत्मयज्ञ से बढ़कर यज्ञ नहीं है दूजा ॥
कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा ।
मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा॥