"शेषनाथ प्रसाद श्रीवास्तव / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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+ | अध्यापन के दौरान रजनीश के साहित्य से परिचित हुए. [[अकेले की नाव अकेले की ओर / शेषनाथ प्रसाद श्रीवास्तव|"अकेले की नाव अकेले की ओर"]] ओशो के एक सूत्र वाक्य से प्रभावित होकर उन्होंने लिखी. वह सूत्रवाक्य है- जीवन की यात्रा "अकेले से अकेले तक की है". कवि इस यात्रा का राही है. इस काव्य-संगुंफन में वह अपने अकेले तक पहुँचने के लिए अपने अकेले की ओर भावगत हो यात्रारत है.. | ||
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+ | यह संगुम्फन पिछली सदी के बीतने के पूर्व ही तैयार हो गया था। पर सेवानिवृत्ति के बाद ही उन्होंने इसके प्रकाशन में रूचि ली. |
17:37, 14 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
शिक्षा: बी. एस. सी. , बीएड , एम.ए. (हिंदी) , बी. ए. (संस्कृत) , सेवानिवृत्त हिन्दी प्रवक्ता ,
हाई स्कूल से ही कविता में विशेष रूचि
प्रथम पसंदीदा कवि- मैथिलीशरण गुप्त
हाई स्कूल के सेंटप सहपरीक्षार्थियों की विदाई के समय का धन्यवाद भाषण कविता में ही दिया। वह कविता वहीं विदाई-स्थल पर ही ऐन समय पर लिखी गई थी. एक सज्जन, जो शेषनाथ जी को कविता लिखते देख रहे थे, उन्होनें टिप्पणी की थी "निराला भी ऐसे ही लिखते थे".
वह इंटर, डिग्री में 'निराला' और 'पन्त' की रचनाओं से परिचित और प्रभावित हुए। कई कवितायेँ रचीं। इनके संग्रह भी तैयार किए पर इन्हें प्रकाशित नहीं कराए।
अध्यापन के दौरान रजनीश के साहित्य से परिचित हुए. "अकेले की नाव अकेले की ओर" ओशो के एक सूत्र वाक्य से प्रभावित होकर उन्होंने लिखी. वह सूत्रवाक्य है- जीवन की यात्रा "अकेले से अकेले तक की है". कवि इस यात्रा का राही है. इस काव्य-संगुंफन में वह अपने अकेले तक पहुँचने के लिए अपने अकेले की ओर भावगत हो यात्रारत है..
यह संगुम्फन पिछली सदी के बीतने के पूर्व ही तैयार हो गया था। पर सेवानिवृत्ति के बाद ही उन्होंने इसके प्रकाशन में रूचि ली.