भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हारौ आधार / संजय आचार्य वरुण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
+
|रचनाकार=संजय आचार्य वरुण
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
+
|संग्रह=मुट्ठी भर उजियाळौ / संजय आचार्य वरुण
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
जमीं पर रैय’र
 +
बात करणो नीं जाणूं म्हैं
 +
म्हनै आछो लागै
 +
हवा मै उडणौ।
 +
इण खातर ही
 +
कदे खिसकै कोनी
 +
म्हारै पगां हेठली जमीं।
 +
म्हैं ठोकर खाय’र
 +
कदे नीं पड़यौ।
 +
क्यूं के
 +
हवा में भाठा नीं हुवै।
 +
म्है म्हारै पगां ने
 +
कष्ट नी देवूं
 +
हवा चलावै म्हनै
 +
हवा उड़वै मनै
 +
इण खातर
 +
थकणै अर थमणै री तो
 +
बात ही कठै आवै।
 +
म्हैं हवा में उडू, पण
 +
फेर भी म्हैं
 +
आधार हीन कोनी
 +
क्यूं  के
 +
जिण हवा में म्है उडू
 +
उण री जड़ा
 +
समायोड़ी है
 +
इण जमीं में घणी ऊंडी
 +
ठेठ मांय।
 
</poem>
 
</poem>

22:29, 25 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण

जमीं पर रैय’र
बात करणो नीं जाणूं म्हैं
म्हनै आछो लागै
हवा मै उडणौ।
इण खातर ही
कदे खिसकै कोनी
म्हारै पगां हेठली जमीं।
म्हैं ठोकर खाय’र
कदे नीं पड़यौ।
क्यूं के
हवा में भाठा नीं हुवै।
म्है म्हारै पगां ने
कष्ट नी देवूं
हवा चलावै म्हनै
हवा उड़वै मनै
इण खातर
थकणै अर थमणै री तो
बात ही कठै आवै।
म्हैं हवा में उडू, पण
फेर भी म्हैं
आधार हीन कोनी
क्यूं के
जिण हवा में म्है उडू
उण री जड़ा
समायोड़ी है
इण जमीं में घणी ऊंडी
ठेठ मांय।